Wednesday, September 12, 2018

सवालः क्या कांग्रेस के साथ गठबंधन बनाएंगे?

कांग्रेस के साथ गठबंधन राज्य के अनुसार तय होगा. देश के स्तर पर देखें तो कभी भी कोई महागठबंधन पहले से तय नहीं होता. आज तक जितनी भी गठबंधन सरकारें बनी हैं, वो चुनाव के बाद ही बने.
इस तरह जो भी गठबंधन होगा वो 2019 चुनाव के बाद बनेगा, बस अभी यह तय किया जाए कि बीजेपी के ख़िलाफ़ वोटों का बंटवारा कम से कम हो.
सवालः आज के ज़माने में भी सोशल मीडिया में आपलोगों की मौजूदगी बहुत ही कम है, जबकि दूसरी तरफ बीजेपी को देखेंया दूसरी पार्टियों और नेताओं को देखें तो वे सोशल मीडिया पर बहुत अधिक एक्टिव रहते हैं. डोनल्ड ट्रंप ट्विटर के ज़रिए विदेश नीतियां तय करते हैं. यह आपकी आलोचना है कि आपका मीडिया सेल नहीं है?
हमारा सोशल मीडिया सेल है, हर एक राज्य में अलग-अलग सोशल मीडिया सेल चल रहे हैं. हां, बीजेपी के मुकाबले उतना मज़बूत सोशल मीडिया नहीं है. लेकिन यह भी तो है कि अगर कोई अमरीका का राष्ट्रपति या भारत का प्रधानमंत्री होगा तो उसकी ट्विटर फॉलोइंग भी तो ज़्यादा होगी.
सवालः नरेंद्र मोदी हमेशा खुद ट्वीट नहीं करते, उनकी पार्टी में भी अलग-अलग स्तर पर सोशल मीडिया को संभाला जाता है और हिंदुत्व के एजेंडे को बढ़ाया जाता है. आप लोग अगर जय भीम लाल सलाम कह रहे हैं तो उसको बढ़ाने के लिए ट्विटर या फ़ेसबुक पर कहां प्लैटफ़ॉर्म है?
आप मेरे फ़ेसबुक या ट्विटर पर जाइए, पार्टी के फ़ेसबुक ट्विटर को देखिए वहां ये सब है. हां, एक नेटवर्क बनाने पर विचार कर रहे हैं...
सवालः इंस्टाग्राम...स्नैपचैट के बारे में सोचते हैं?
(हंसते हुए) पहले व्हाट्सएप की ही नेटवर्किंग तो कर लें, जिसके अंदर हम लगे हुए हैं और जल्द ही आपको इसमें सुधार दिखेगा. हालांकि मैं यह मानता हूं कि बाक़ी पार्टियों के मुक़ाबले हमारी सोशल मीडिया में कमजोरी है लेकिन जल्दी ही वह दुरुस्त हो रही है.भी किसी न किसी तरीके से अपने समय का हिसाब रखते हैं. कुछ लोग डायरी रखते हैं. कुछ हाई-टेक ऐप और टूल का सहारा लेते हैं.
वक़्त का हिसाब-किताब रखने की शुरुआत तो बड़े जोश से होती है, लेकिन कुछ ही दिनों में सारा जोश ठंडा पड़ने लगता है.
ब्रिटेन के हरफोर्डशायर की उद्यमी शार्लोट बॉर्डेवे ने टाइम मैनेजमेंट ऐप से लेकर किताब और डायरी तक सब कुछ आजमा लिया. लेकिन शार्लोट को लगता है कि वक़्त उनके हाथ से फिसला जा रहा है.
"मैं कभी इतना व्यवस्थित नहीं हो पाई कि अपने सारे काम समय से कर पाऊं."
टेक्सास के ऑस्टिन में पीएचडी कर रही एना सिसिलिया कैले ने अपने काम याद रखने के लिए ऐप का सहारा लिया. टाइम मैनेजमेंट ऐप का दावा था कि अपने जीवन की गतिविधियों पर कैले का 'नियंत्रण' रहेगा.
कैले के लिए यह सब कुछ दिनों तक तो कामयाब रहा, फिर इसने काम करना बंद कर दिया. बात बन नहीं पाई.
ऐसा होने पर ज्यादातर लोग दूसरे ऐप या किसी दूसरे टूल का सहारा लेते हैं. टाइम मैनेज करने वाले सैकड़ों ऐप उपलब्ध हैं. किसी में कम फ़ीचर हैं किसी में ज्यादा.
अपने समय को व्यवस्थित कैसे करें, इस बारे में इंटरनेट पर असंख्य ब्लॉग और वीडियो मौजूद हैं.
अमरीका और ब्रिटेन की ज्यादातर यूनिवर्सिटीज़ किसी ना किसी रूप में टाइम मैनेजमेंट की ट्रेनिंग देती हैं. लेकिन अब तक किसी को वह तरकीब नहीं मिली जो सच में काम कर सके.
टाइम मैनेजमेंट टूल से तनाव कम होने चाहिए थे, लेकिन असल में वे तनाव बढ़ा रहे हैं. कुछ टूल्स कुछ लोगों के लिए तो काम करते हैं, लेकिन सबके लिए नहीं.
मॉन्ट्रियल की कॉनकोर्डिया यूनिवर्सिटी के रिसर्चर ब्रैड एयॉन और जॉर्ज वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के हर्मन आगुर्निस ने अपने रिसर्च पेपर में कहा है कि "टाइम मैनेजमेंट और खुशी में सीधा रिश्ता नहीं है."
अपना शोध निबंध समय पर पूरा नहीं कर पाने के बाद कैले ने टाइम मैनेजमेंट की कक्षाओं में जाना शुरू किया था. वहां उन्होंने टाइम मैनेजमेंट टूल्स के बारे में जाना.
शुरुआत में कैले के काम समय पर होने लगे, लेकिन फिर एक के बाद एक सारे टूल्स नाकाम होने लगे.
कैले कहती हैं, "हम खुद से पूछते हैं कि क्या हम उतना काम नहीं करते जितना हम कर सकते हैं. लेकिन हम यह कभी नहीं सोचते कि हम जितना कर सकते थे उससे ज्यादा कर रहे हैं."
काम के लिए अपने पीछे पड़े रहने से भी नुकसान होता है.
ब्रैड एयॉन के मुताबिक समय को व्यवस्थित करने वाले ऐप इस तरह से बनाए जाते हैं कि आप हमेशा खुद से बेहतर काम करेंगे. लेकिन खुद पर दबाव बना लेने से काम नहीं बनता और लोग निराश होने लगते हैं. यह खुद को हराने वाली रणनीति है.
ज्यादातर लोग सोचते हैं कि टाइम मैनेजमेंट टूल के इस्तेमाल से वे ज्यादा काम करने लगेंगे. लेकिन वे यह नहीं सोचते कि कोई ऐप आपकी उत्पादकता को हमेशा नहीं बढ़ा सकता.
एयॉन कहते हैं, "यह समय पर काम पूरा ना कर पाने की समस्या नहीं है. असल समस्या यह है कि लोग ज्यादा काम कर रहे हैं."
खुद से ज्यादा काम लेने की कोशिश आपकी प्रेरणा को भी मार देती है.
यूसी बर्कले ग्रेटर गुड साइंस सेंटर की सीनियर फेलो क्रिस्टिन कार्टर के मुताबिक टाइम मैनेजमेंट टूल्स इंसान की इच्छाशक्ति पर निर्भर करते हैं.
लेकिन आदमी इच्छाशक्ति से ज्यादा भावनाओं से प्रेरित होता है.
कारखानों में जहां कई मजदूर एक साथ काम करते हैं, वहां वे समय से बंधे हुए नहीं होते. असेंबली लाइन में भी समय कोई और तय करता है.
दफ्तरों में काम करने वाले लोगों को आज़ादी होती है कि वे अपने काम को अपने समय के हिसाब से व्यवस्थित कर सकते हैं.
ब्रैड एयॉन कहते हैं, "इस आज़ादी के साथ बड़ी जिम्मेदारी होती है. आपको खुद सोचना है कि आप अपने समय को कैसे मैनेज करें."
कई प्रोफेशनल एक साथ कई प्रोजेक्ट पर काम करते हैं. उन्हें परिवार और दोस्तों को भी समय देना होता है. ऐसे में कुछ काम छूट जाते हैं. एयॉन कहते हैं, "खुद पर ज्यादा दबाव डालेंगे तो गलती सिर्फ़ आपकी होगी."
हर व्यक्ति की अपनी प्राथमिकताएं होती हैं. इसी तरह हर टूल विशिष्ट परिस्थितियों और खास तरह के लोगों को ध्यान में रखकर बनाए जाते हैं. कोई एक टूल सबके लिए टाइम मैनेज नहीं कर सकता.
कुछ लोग दूसरों के मुक़ाबले वक़्त के ज्यादा पाबंद होते हैं. उन्हें इस बात का एहसास होता है कि किसी एक काम पर कितना समय देना है.
दूसरी तरह के लोग बेहद ही आशावादी होते हैं जो यह सोचकर चलते हैं कि सब हो जाएगा.
कुछ लोग एक समय में सिर्फ़ एक काम करना पसंद करते हैं, जबकि कुछ लोग एक साथ कई काम भी कर सकते हैं.
समय के बारे में हमारे विचारों पर काम करने की जगह और वहां संस्कृति का भी असर रहता है.
टाइम मैनेजमेंट टूल एक खास तरह के लोग ही बनाते हैं- सॉफ्टवेयर इंजीनियर.
वेनेजुएला के उद्यमी हरनन ऐरासना ने 'एफर्टलेस' नामक ऐप बनाया है.
ऐरासना कहते हैं, "हम उन समस्याओं का समाधान चाहते हैं जो हमसे ही जुड़ी हैं. हमें अपनी डेस्क पर फैले झमेले से रोज निपटना पड़ता है."
टाइम मैनेज करने वाले टूल्स को लेकर सबसे ज्यादा उत्साहित भी तकनीकी क्षेत्र के लोग ही हैं. इस बारे में सबसे नई किताब 'पिक थ्री' रैंडी ज़करबर्ग और फ्रांसेस्को सिरिलो ने लिखी है.
रैंडी, मार्क ज़करबर्ग की बहन हैं. इन्होंने ही फेसबुक लाइव की शुरुआत की थी. सिरिलो सॉफ्टवेयर कंसल्टेंट हैं, जिन्होंने पोमोडोरा तकनीक की शुरुआत की थी.
ऐरासना ने 'एफर्टलेस' ऐप तब बनाया जब वे कई ऐप इस्तेमाल करके थक गए थे. एक समय उन्होंने सारे ऐप ही बंद कर दिए थे. वे कागज कलम के सहारे काम चलाने लगे. लेकिन इससे उन्हें यह पता नहीं चल पाता था कि किसी काम को खत्म करने में कितना समय बाकी है.
ऐरासेना का 'एफर्टलेस' ऐप बस यही दो काम करता है. इन दिनों लोकप्रिय ज्यादातर ऐप और टूल इसी तरह बने हैं.
अपने बनाए ऐप या टूल से काम करना ठीक है. लेकिन कॉरपोरेट दुनिया में ज्यादा फ़ीचर वाले टूल की जरूरत होती है.
'वर्केप' सॉफ्टवेयर बनाने वाले एडुआर्डो अल्वारेज़ कहते हैं कि ऐसा भी होता है कि कंपनियां कई फ़ीचर वाले महंगे सॉफ्टवेयर खरीदती है, लेकिन कर्मचारियों को उनका इस्तेमाल समझाना मुश्किल हो जाता है.
कंपनियों के लिए बनाए गए ऐसे टूल कर्मचारियों के स्टाइल से मेल नहीं खाते. लेकिन चूंकि टीम के सारे सदस्यों के बीच समन्वय बनाने के लिए ऐसे टूल इस्तेमाल होते हैं, इसलिए उनसे चिढ़ होने लगती है.
अल्वारेज़ कहते हैं, "इस तरह के टूल्स में लचीलापन जरूरी है. आपको अपनी टीम के हर सदस्य को अपना काम दिखाना होता है." लेकिन अल्वारेज़ भी मानते हैं कि यह बोझिल है. "कई बार मेरे इनबॉक्स में भी ढेर सारे पुराने काम आ जाते हैं."
अल्वारेज़ को लगता है कि इस समस्या का हल भी टेक्नोलॉजी में ही है. 'वर्केप' जल्द ही अल 'कोच' नाम का टूल लॉन्च करने वाला है. यह यूजर्स को अधूरे काम की याद दिलाता रहेगा.

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