Monday, September 17, 2018

चर्चा में रहे लोगों से बातचीत पर आधारित साप्ताहिक कार्यक्रम

लेकिन यही को वक्त था तब वो हुआ जिसकी उम्मीद नहीं थी.
पार्क याद करते हैं कि उन्हें इस मुलाक़ात के दौरान पता चला कि किम जोंग इल नहीं चाहते कि 1997 दिसंबर के चुनावों में दक्षिण कोरिया में राष्ट्रपति पद पर किम डे-जंग जीत कर आएं.
लेकिन आख़िर में किम डाई-जंग चुनाव जीत गए. उन्होंने साल 2000 में उत्तर कोरियाई सम्मेलन का आयोजन किया और उत्तर और दक्षिण कोरिया के एक होने के लिए नई कोशिशें की. ये पहले मौक़ा था जब कोरियाई प्रायद्वीप में अलग-अलग होने के बाद उत्तर और दक्षिण कोरियाई नेता एक दूसरे से मिल रहे थे.
लेकिन उत्तर कोरिया को डर था कि उदार नेता के तौर पर वो काफी ज़्यादा लोकप्रिय हैं और वो इतने चालाक और अनुभवी हैं कि उन्हें संभाल पाना उत्तर कोरिया के लिए मुश्किल होगा.
पार्क को दक्षिण कोरिया खुफिया एजेंसी से भी जानकारी मिली थी कि एजेंसी खुद डाई-जंग के राष्ट्रपति के रूप में नहीं देखना चाहती थी और उत्तर कोरिया को लेकर उलझाना चाहा ताकि उनकी उम्मीदवारी फीकी पड़ सके.
एजेंसी ने उत्तर कोरिया से असैन्यीकृत इलाके में हथियारबंद विरोध का आयोजन करने के लिए भी कहा था और उत्तर कोरिया को लेकर उलझाना चाहा ताकि उनकी उम्मीदवारी फीकी पड़ सके.
एजेंसी ने उत्तर कोरिया से कहा कि सेनामुक्त ज़ोन में सशस्त्र विरोध प्रदर्शन करे जो दोनों कोरिया की सीमा है ताकि मतदाता किम डाई-जंग के प्रतिद्वंद्वी ली होई-चेंज की तरफ़ झुक जाएं.
पार्क ने कहा, "वे दुश्मन के साथ डील कर रहे थे, लोगों की इच्छा को दांव पर लगा अपने हितों को ऊपर रख रहे थे जो कि गलत था."
पार्क को लगा कि जो किया जा रहा था वह सही नहीं था. उन्होंने डाई-जंग की टीम को चुनावी हस्तक्षेप के बारे में चेताया.
उन्होंने उत्तरी कोरियाई अधिकारियों को भी मनाया कि वे सेनामुक्त ज़ोन में विरोध ना करें.
आखिरकार, किम डाई-जंग ने कम अंतर से चुनाव जीत लिया और दोनों कोरिया के संबंधों के बीच एक नया अध्याय शुरू किया.
इसके बाद स्थानीय मीडिया की खबरों के मुताबिक किम डाई-जंग के चुनाव जीते जाने के बाद किम जोंग-इल ने उन वरिष्ठ अधिकारियों को मरवा दिया जिन्होंने उसे विश्वास दिलाया था कि उत्तर को दक्षिण से बातचीत करनी चाहिए और चुनावी हस्तक्षेप सफल होगा.
तो यह छुपा हुआ एजेंट कैसे सामने आया जिसकी पहचान और मिशन को कभी सार्वजनिक नहीं किया जाना चाहिए था?
एक साल बाद जब पार्क किम जोंग-इल से मिले थे और किम डाई-जंग को पद मिलने के बाद दक्षिण कोरिया की खुफिया एजेंसी ने जानबूझकर एक दस्तावेज लीक किया जिसमें चुनाव से पहले उत्तरी कोरिया के साथ पार्क के मिले होने की बात थी.
उन्हें किम डाई-जंग की सरकार को चेतावनी देने के लिए ऐसा किया ताकि वो मामले की तह तक ना जाएं. फाइल में किम डाई-जंग की टीम के प्रमुख लोगों के बारे में अतिरिक्त जानकारी थी, जो उत्तर कोरिया के अधिकारियों से मिले थे.
फ़ाइल में "वीनस नेगरा" के बारे में भी जानकारी थी जो पार्क का कोड नाम था. पार्क अब जासूस के रूप में काम नहीं कर सकते थे तो उन्हें जाने दिया गया. वह बीजिंग चले गए और 2010 तक अपने परिवार के साथ सामान्य जीवन जीते रहे.
उसी साल वीनस नेगरा पर खुफ़िया एजेंसी से निकाले जाने के बाद आरोप लगा कि उसने सैन्य जानकारी दक्षिण कोरिया से उत्तर कोरिया को दी है और उसे 6 साल की सज़ा हो गई.
पार्क ने कहा कि उन्होंने जानकारी दी थी लेकिन वो कोई सैन्य जानकारी नहीं थी जैसा कि आरोप था और वो नए ट्रायल की योजना बना रहे हैं.
मुकदमे में फैसला आया था कि पार्क एक डबल एजेंट थे. उनसे पूछा कि क्या वो थे तो उन्होंने कहा, "इंटेलिजेंस की दुनिया में डबल एजेंट एक होना एक बुरी चीज़ है. इसका मतलब होता है कि आपके पैर दोनों तरफ हैं और आप दोनों को एक-दूसरे की खुफिया जानकारी बेच रहे हो. मैंने ऐसा कभी नहीं किया.
पार्क ने कहा कि उन्हें अपने देश से कोई शिकायत नहीं.

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